EN اردو
क्या दौर है कि जो भी सुखनवर मिला मुझे | शाही शायरी
kya daur hai ki jo bhi suKHnawar mila mujhe

ग़ज़ल

क्या दौर है कि जो भी सुखनवर मिला मुझे

अदीब सुहैल

;

क्या दौर है कि जो भी सुखनवर मिला मुझे
गुम-गश्ता अपनी ज़ात के अंदर मिला मुझे

किस प्यार से गया था तिरी आस्तीं के पास
शाख़-ए-हिना की चाह में ख़ंजर मिला मुझे

इस ज़ुल्मत-ए-हयात में इक लफ़्ज़ प्यार का
जब मिल गया तो माह-ए-मुनव्वर मिला मुझे

सूरत-गरान-ए-अस्र का था इंतिज़ार-कश
तेरी रह-ए-तलब में जो पत्थर मिला मुझे

रोज़-ए-अज़ल से कार-गह-ए-हस्त में 'सुहैल'
दिल ही ग़म-ए-हयात का मेहवर मिला मुझे