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क्या बताऊँ मुझे क्या लगता है | शाही शायरी
kya bataun mujhe kya lagta hai

ग़ज़ल

क्या बताऊँ मुझे क्या लगता है

जर्रार छौलिसी

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क्या बताऊँ मुझे क्या लगता है
हर-नफ़स तीर-ए-जफ़ा लगता है

हूँ वो ख़ुद्दार किसी से क्या कहूँ
साँस लेना भी बुरा लगता है

फलते देखी है कहीं शाख़-ए-सितम
मेरे कहने का बुरा लगता है

हादसे भी हैं बड़े काम की चीज़
दोस्त दुश्मन का पता लगता है

मेरा सर तो कहीं झुकता ही नहीं
तेरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा लगता है

क्या कहूँ हालत-ए-दिल ऐ 'जर्रार'
दर्द कुछ और सिवा लगता है