EN اردو
क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया | शाही शायरी
kya bataun kaisa KHud ko dar-ba-dar maine kiya

ग़ज़ल

क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया

वसीम बरेलवी

;

क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया
उम्र-भर किस किस के हिस्से का सफ़र मैं ने किया

तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा इस शिद्दत के साथ
जिस बला का प्यार तुझ से बे-ख़बर मैं ने किया

कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेच-ओ-ख़म
ज़िंदगी-भर तो किताबों का सफ़र मैं ने किया

किस को फ़ुर्सत थी कि बतलाता तुझे इतनी सी बात
ख़ुद से क्या बरताव तुझ से छूट कर मैं ने किया

चंद जज़्बाती से रिश्तों के बचाने को 'वसीम'
कैसा कैसा जब्र अपने आप पर मैं ने किया