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क्या बताएँ हाल-ए-दिल उन की शनासाई के ब'अद | शाही शायरी
kya bataen haal-e-dil unki shanasai ke baad

ग़ज़ल

क्या बताएँ हाल-ए-दिल उन की शनासाई के ब'अद

अफ़सर माहपुरी

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क्या बताएँ हाल-ए-दिल उन की शनासाई के ब'अद
हब्स बढ़ता ही चला जाता है पुर्वाई के ब'अद

एक मुद्दत पर ख़याल उन का कहाँ से आ गया
कितनी अच्छी अंजुमन लगती है तन्हाई के ब'अद

जब नज़र आया न साहिल उन की चश्म-ए-नाज़ में
क्या दिखाई देगा वो दरिया की गहराई के ब'अद

दर-ब-दर की ठोकरें खाईं मोहब्बत में तो क्या
हो गए हम मोहतरम कुछ और रुस्वाई के ब'अद

हम कहाँ होंगे न जाने इस तमाशा-गाह में
किस तमाशाई से पहले किस तमाशाई के ब'अद

उन के बारे में फ़क़त इतना हमें मालूम है
अब वो रहते हैं हमारे दिल की अँगनाई के ब'अद

ख़ूब है 'अफ़सर' हमें अपनी हक़ीक़त की ख़बर
क्या हमारा नाला-ए-दिल उन की शहनाई के ब'अद