क्या बला सेहर हैं सजन के नयन
है ख़जिल जिस अंगे हिरन के नयन
मुझ पे करते हैं यार का जादू
उस सितमगार-ए-सेहर-ए-फ़न के नयन
गर्दिश-ए-मय सूँ आज फ़ारिग़ है
जिन ने देखे हैं ख़ुश-नयन के नयन
आरज़ू में तिरी ऐ नूर-ए-नज़र
मुंतज़िर हूँ खुले हैं मन के नयन
शोर डाले हैं सारे आलम में
दिलबर-ए-शक्करीं-सुख़न के नयन
गुल-ए-नर्गिस अगर नहीं देखा
देख यकबार गुल-बदन के नयन
क्यूँ न हुए हिज्र बे-ख़बर सूँ 'सिराज'
होश खोते हैं मन हिरन के नैन
ग़ज़ल
क्या बला सेहर हैं सजन के नयन
सिराज औरंगाबादी