क्या बैठ जाएँ आन के नज़दीक आप के
बस रात काटनी है हमें आग ताप के
कहिए तो आप को भी पहन कर मैं देख लूँ
मा'शूक़ यूँ तो हैं ही नहीं मेरी नाप के
बजती हैं शहर शहर मिरे दिल की धड़कनें
चर्चे हैं दूर दूर उसी ढोलक की थाप के
इक रात आप जिस्म-ए-ख़ुदा बन के आइए
और हम गुनाहगार हों पहलू में आप के
'एहसास-जी' पे ऐसा चढ़ा आशिक़ी का रंग
सब दाग़ मिट गए हैं तिलक और छाप के
ग़ज़ल
क्या बैठ जाएँ आन के नज़दीक आप के
फ़रहत एहसास