EN اردو
क्या बदल दोगे तुम इक नज़र से | शाही शायरी
kya badal doge tum ek nazar se

ग़ज़ल

क्या बदल दोगे तुम इक नज़र से

फ़रीद जावेद

;

क्या बदल दोगे तुम इक नज़र से
बे-क़रारी तो है उम्र भर से

दोस्तो शहर-ए-जाँ जल रहा है
अब कहाँ जाओगे और किधर से

ज़ख़्म हैं दिल पे क्या क्या न देखो
फूल चुन लो लब-ए-नग़्मागर से

जाग कर रात हम ने गुज़ारी
पूछ लो कारवान-ए-सहर से

ज़ुल्मत-ए-शब है 'जावेद' और हम
चाँद निकले न जाने किधर से