EN اردو
क्या बद-गुमानियाँ हैं मिरी जान लीजिए | शाही शायरी
kya bad-gumaniyan hain meri jaan lijiye

ग़ज़ल

क्या बद-गुमानियाँ हैं मिरी जान लीजिए

जोशिश अज़ीमाबादी

;

क्या बद-गुमानियाँ हैं मिरी जान लीजिए
ये दिल तो है वही इसे पहचान लीजिए

हम से तो ये कभी नहीं होने का नासेहो
सुनिए तुम्हारी बात को और मान लीजिए

ने ऐश की तलब है न इशरत की आरज़ू
ऐ चर्ख़ किस लिए तिरा एहसान लीजिए

गर हुक्म हो तो काट के सर आगे ला रखूँ
लेने का इस के रखिए न अरमान लीजिए

आया हूँ तंग शहर में वहशत के हाथ से
जी चाहता है राह-ए-बयाबान लीजिए

गर इम्तिहान-ए-इश्क़ हो मंज़ूर तो अभी
करता हूँ मैं नियाज़ दिल ओ जान लीजिए

मुँह देख नौ-ख़तों का यही आए है ख़याल
दे कर के नक़द-ए-जान ये क़ुरआन लीजिए