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क्या अब मिरी कहानी में | शाही शायरी
kya ab meri kahani mein

ग़ज़ल

क्या अब मिरी कहानी में

मोहम्मद अहमद रम्ज़

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क्या अब मिरी कहानी में
मैं हूँ गले तक पानी में

जैसे मैं शामिल ही नहीं
अपनी सर-ओ-सामानी में

मेरी तरह ठहरेगा कौन
सैल-ए-हर्फ़-ओ-मआनी में

रक्खो मुझे इक तिनके पर
देखो मुझे तुग़्यानी में

इक आईना तोड़ो और
डालो मुझे हैरानी में

इक खंडर हूँ यादों का
झाँको मिरी वीरानी में

बे-पायाँ बे-हद्द-ओ-हिसाब
मैं अपनी जौलानी में

गर्द मिरी सब तीर ओ ग़ज़ाल
मैं आगे हूँ रवानी में

लुत्फ़ मुझे आता है 'रम्ज़'
अपनी मर्सिया-ख़्वानी में