क्या अब मिरी कहानी में
मैं हूँ गले तक पानी में
जैसे मैं शामिल ही नहीं
अपनी सर-ओ-सामानी में
मेरी तरह ठहरेगा कौन
सैल-ए-हर्फ़-ओ-मआनी में
रक्खो मुझे इक तिनके पर
देखो मुझे तुग़्यानी में
इक आईना तोड़ो और
डालो मुझे हैरानी में
इक खंडर हूँ यादों का
झाँको मिरी वीरानी में
बे-पायाँ बे-हद्द-ओ-हिसाब
मैं अपनी जौलानी में
गर्द मिरी सब तीर ओ ग़ज़ाल
मैं आगे हूँ रवानी में
लुत्फ़ मुझे आता है 'रम्ज़'
अपनी मर्सिया-ख़्वानी में
ग़ज़ल
क्या अब मिरी कहानी में
मोहम्मद अहमद रम्ज़