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कूचा-ए-यार में गदाई की | शाही शायरी
kucha-e-yar mein gadai ki

ग़ज़ल

कूचा-ए-यार में गदाई की

कौसर नियाज़ी

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कूचा-ए-यार में गदाई की
इक यही काम की कमाई की

हाए वो इंतिज़ार के लम्हे
आह ये साअतें जुदाई की

हम ने हुस्न-ए-अदा कहा इस को
जब कभी तू ने कज-अदाई की

दोस्तो देख भाल कर चलना
सख़्त मंज़िल है आश्नाई की

शैख़-साहब ख़ुदा ही बन बैठे
है बुरी चाट पारसाई की

रंग-ए-'हसरत' में आज ऐ 'कौसर'
ख़ूब तू ने ग़ज़ल-सराई की