कुशाद ज़ेहन-ओ-दिल-ओ-गोश की ज़रूरत है
ये ज़िंदगी है यहाँ होश की ज़रूरत है
सुनाई देगी यक़ीनन ज़मीर की आवाज़
मख़ातबीन-ए-सुबुक-गोश की ज़रूरत है
अब एहतियाज नहीं सर्व-क़ामतों की मुझे
मुझे तो अब किसी हम-दोश की ज़रूरत है
ख़रोश-ए-ख़ुम का भरम खोलना है क्या मुश्किल
बस एक रिंद-ए-बला-नोश की ज़रूरत है
निगार-ए-सुब्ह के आँसू समेटने के लिए
गुलों को वुसअ'त-ए-आग़ोश की ज़रूरत है
कहीं फ़क़त मुतकल्लिम सुकूत की हाजत
कहीं तकल्लुम-ए-ख़ामोश की ज़रूरत है

ग़ज़ल
कुशाद ज़ेहन-ओ-दिल-ओ-गोश की ज़रूरत है
जाफ़र बलूच