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कुएँ जो पानी की बिन प्यास चाह रखते हैं | शाही शायरी
kunen jo pani ki bin pyas chah rakhte hain

ग़ज़ल

कुएँ जो पानी की बिन प्यास चाह रखते हैं

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

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कुएँ जो पानी की बिन प्यास चाह रखते हैं
मगर नहंग भी दरिया की थाह रखते हैं

शहादत अपनी गवाही पे अब भी है शाहिद
शहीद वो हैं जो हक़ को गवाह रखते हैं

ये जान लीजिए पहचान दोनों की है यही
जो ताज राजा तो कश्कोल शाह रखते हैं

वो ख़ाक धूल चटाएँगे अपने दुश्मन को
जो दिल न क़ल्ब-ए-अमीर-ए-सिपाह रखते हैं

हैं दंग अपनी ही दहशत के डर से दहशत-गर्द
ये काले नाग हैं दिल भी सियाह रखते हैं

जो लोग अच्छे हैं रखते हैं ठीक घर को वही
ख़राब लोग तो घर को तबाह रखते हैं

हमारी उन की सियासत का रंग ख़ूब है वाह
कि हम इमाम तो वो सरबराह रखते हैं

जो अंधे आँखों के हैं और नैन मुझ को है नाम
वो कोर-चश्म भी हम पर निगाह रखते हैं

बना के क़स्र-ए-वफ़ा शेर बोला हैदर का
कटा के हाथ भी हम दस्त-गाह रखते हैं

'वक़ार-हिल्म' अली वालों से ख़ुदा की क़सम
पुल-सिरात के रस्ते भी राह रखते हैं