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कुछ तो वफ़ा का रंग हो दस्त-ए-जफ़ा के साथ | शाही शायरी
kuchh to wafa ka rang ho dast-e-jafa ke sath

ग़ज़ल

कुछ तो वफ़ा का रंग हो दस्त-ए-जफ़ा के साथ

साग़र मेहदी

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कुछ तो वफ़ा का रंग हो दस्त-ए-जफ़ा के साथ
सुर्ख़ी मिरे लहू की मिला लो हिना के साथ

हम वहशियों से होश की बातें फ़ुज़ूल हैं
पैवंद क्या लगाएँ दरीदा-क़बा के साथ

सदियों से फिर रहा हूँ सुकूँ की तलाश में
सदियों की बाज़गश्त है अपनी सदा के साथ

परवाज़ की उमंग न कुंज-ए-क़फ़स का रंज
फ़ितरत मिरी बदल गई आब-ओ-हवा के साथ

क्या पत्थरों के शहर में दूकान-ए-शीशा-गर
इक शम्अ' जल रही है ग़ज़ब की हवा के साथ