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कुछ तो हासिल हो गया इरफ़ान-ए-मय-ख़ाना मुझे | शाही शायरी
kuchh to hasil ho gaya irfan-e-mai-KHana mujhe

ग़ज़ल

कुछ तो हासिल हो गया इरफ़ान-ए-मय-ख़ाना मुझे

रज़ा जौनपुरी

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कुछ तो हासिल हो गया इरफ़ान-ए-मय-ख़ाना मुझे
आज पैमाने को मैं तकता हूँ पैमाना मुझे

दार पर नग़्मों का छा जाना कोई आसाँ नहीं
साज़ क्या कम था जो बख़्शा सोज़-ए-परवाना मुझे

जोड़ डाले कितने साग़र कितने मीना कितने दिल
इक ज़रा जो मिल गई थी ख़ाक-ए-मय-ख़ाना मुझे

ज़िंदगी अपनी हक़ीक़त ही हक़ीक़त थी मगर
आज दुनिया ने बना डाला है अफ़्साना मुझे

रिश्ता-ए-देरीना-ए-वहशत न टूटा आज तक
याद वीराने को मैं करता हूँ वीराना मुझे

सुब्ह-ए-का'बा शाम-ए-बुत-ख़ाना की है मुझ को तलाश
ढूँढती है सुब्ह-ए-का'बा शाम-ए-बुत-ख़ाना मुझे