EN اردو
कुछ तो ऐसे हैं कि जिन से फिर मिला जाता नहीं | शाही शायरी
kuchh to aise hain ki jin se phir mila jata nahin

ग़ज़ल

कुछ तो ऐसे हैं कि जिन से फिर मिला जाता नहीं

मुस्तफ़ा शहाब

;

कुछ तो ऐसे हैं कि जिन से फिर मिला जाता नहीं
एक वो भी है बिना जिस के रहा जाता नहीं

होते होते मैं पहुँच जाता हूँ अपने आप तक
इस से आगे और कोई रास्ता जाता नहीं

कितनी धीमी हो गई है आँच अपने प्यार की
हम धुएँ में घिर गए हैं और जला जाता नहीं