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कुछ तग़ाफ़ुल है तो कुछ नाज़-ओ-अदा-कारी है | शाही शायरी
kuchh taghaful hai to kuchh naz-o-ada-kari hai

ग़ज़ल

कुछ तग़ाफ़ुल है तो कुछ नाज़-ओ-अदा-कारी है

सीन शीन आलम

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कुछ तग़ाफ़ुल है तो कुछ नाज़-ओ-अदा-कारी है
क़हर का क़हर है दिलदारी की दिलदारी है

इल्तिफ़ात-ए-निगह-ए-नाज़ से बच कर रहना
जज़्बा-ए-इश्क़ तिरे क़त्ल की तय्यारी है

शफक़तें ज़िंदा हैं इख़्लास की बुनियादों पर
अब भी कुछ लोगों में पहले सी रवादारी है

यही तहज़ीब तो विर्से में मिली है मुझ को
तुम अना समझे हो जिस को मिरी ख़ुद्दारी है

सिलसिला ख़त्म हिजाबात का होता ही नहीं
आइना देखने वाले को भी दुश्वारी है

आज की रात है तूफ़ान के आने की ख़बर
आज की रात चराग़ों पे बहुत भारी है

लोग ख़ुश-फ़हम हैं या ख़्वाब-गज़ीदा 'आलम'
जागते रहने को समझे हैं कि बेदारी है