कुछ सहमी शरमाई ख़ुशबू
रात गए घर आई ख़ुशबू
आँख के रोशन-दान से उतरी
दिल में एक पराई ख़ुशबू
आज़ादी का हाथ पकड़ कर
बाज़ारों में आई ख़ुशबू
तेज़ बहुत बाज़ार था अब के
मेरे हाथ न आई ख़ुशबू
थक कर बासी हो जाने से
पहले घर लौट आई ख़ुशबू
रात के सन्नाटों में बोले
ख़ामोशी तन्हाई ख़ुशबू
ग़ज़ल
कुछ सहमी शरमाई ख़ुशबू
ख़्वाजा साजिद