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कुछ सहमी शरमाई ख़ुशबू | शाही शायरी
kuchh sahmi sharmai KHushbu

ग़ज़ल

कुछ सहमी शरमाई ख़ुशबू

ख़्वाजा साजिद

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कुछ सहमी शरमाई ख़ुशबू
रात गए घर आई ख़ुशबू

आँख के रोशन-दान से उतरी
दिल में एक पराई ख़ुशबू

आज़ादी का हाथ पकड़ कर
बाज़ारों में आई ख़ुशबू

तेज़ बहुत बाज़ार था अब के
मेरे हाथ न आई ख़ुशबू

थक कर बासी हो जाने से
पहले घर लौट आई ख़ुशबू

रात के सन्नाटों में बोले
ख़ामोशी तन्हाई ख़ुशबू