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कुछ नज़र आता नहीं है वो उजाला कर दिया | शाही शायरी
kuchh nazar aata nahin hai wo ujala kar diya

ग़ज़ल

कुछ नज़र आता नहीं है वो उजाला कर दिया

महमूद शाम

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कुछ नज़र आता नहीं है वो उजाला कर दिया
सब ही अपना आप भूले वो तमाशा कर दिया

कान भी पड़ती नहीं है अब तो आवाज़-ए-ज़मीर
खोखले ज़ेहनों ने इतना शोर बरपा कर दिया

हाथ ख़ाली हैं हमारे और कुछ रब्ब-ए-जलील
तू ने जो कुछ भी लिखा था हम ने पूरा कर दिया

मसअले जैसे चटानें रहनुमा जैसे हवा
वक़्त ने कितने फ़लक-बोसों को बौना कर दिया

चुनता फिरता हूँ मैं अपने-आप वही रात दिन
ज़िंदगी ने यूँ बिखेरा रेज़ा रेज़ा कर दिया