कुछ नहीं है मगर है ये दुनिया
अपनी अपनी नज़र है ये दुनिया
अपने मरकज़ पे रक़्स करती हुई
इक मुसलसल सफ़र है ये दुनिया
एक परिंदे की ज़द में आई हुई
इक परिंदे का घर है ये दुनिया
मैं जिधर हूँ उधर तो बस मैं हूँ
तू जिधर है उधर है ये दुनिया
इस तरह सुब्ह को लगाती है
जैसे ताज़ा ख़बर है ये दुनिया
ग़ज़ल
कुछ नहीं है मगर है ये दुनिया
नाज़िम नक़वी