कुछ न कुछ मान सलामत है अभी
एक इम्कान सलामत है अभी
खींच सकता हूँ ग़म-ए-दिल का सुरूर
इतना सामान सलामत है अभी
इक मुसलमान का सर काटा गया
इक मुसलमान सलामत है अभी
मेरी बेटी मिरे विर्से की अमीं
ये क़लम-दान सलामत है अभी
इन हवाओं में नमी है 'राहिल'
कोई इंसान सलामत है अभी

ग़ज़ल
कुछ न कुछ मान सलामत है अभी
राहिल बुख़ारी