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कुछ न कुछ मान सलामत है अभी | शाही शायरी
kuchh na kuchh man salamat hai abhi

ग़ज़ल

कुछ न कुछ मान सलामत है अभी

राहिल बुख़ारी

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कुछ न कुछ मान सलामत है अभी
एक इम्कान सलामत है अभी

खींच सकता हूँ ग़म-ए-दिल का सुरूर
इतना सामान सलामत है अभी

इक मुसलमान का सर काटा गया
इक मुसलमान सलामत है अभी

मेरी बेटी मिरे विर्से की अमीं
ये क़लम-दान सलामत है अभी

इन हवाओं में नमी है 'राहिल'
कोई इंसान सलामत है अभी