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कुछ न कुछ हो तो सही अंजुमन-आराई को | शाही शायरी
kuchh na kuchh ho to sahi anjuman-arai ko

ग़ज़ल

कुछ न कुछ हो तो सही अंजुमन-आराई को

शहज़ाद अहमद

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कुछ न कुछ हो तो सही अंजुमन-आराई को
अपने ही ख़ूँ से फ़िरोज़ाँ करो तन्हाई को

अब ये आलम है कि बीती हुई बरसातों की
अपने ही जिस्म से बू आती है सौदाई को

पास पहुँचे तो बिखर जाएगा अफ़्सूँ सारा
दूर ही दूर से सुनते रहो शहनाई को

किसी ज़िंदाँ की तरफ़ आज हवा के झोंके
पा-ब-ज़ंजीर लिए जाते हैं सौदाई को

किस में ताक़त है कि गुलशन में मुक़य्यद कर ले
इस क़दर दूर से आई हुई पुरवाई को

वो दहकता हुआ पैकर वो अछूती रंगत
चूम ले जैसे कोई लाला-ए-सहराई को

बहुत आज़ुर्दा हो 'शहज़ाद' तो खुल कर रो लो
हिज्र की रात है छोड़ो भी शकेबाई को