EN اردو
कुछ लोग जी रहे हैं ख़ुदा के बग़ैर भी | शाही शायरी
kuchh log ji rahe hain KHuda ke baghair bhi

ग़ज़ल

कुछ लोग जी रहे हैं ख़ुदा के बग़ैर भी

असअ'द बदायुनी

;

कुछ लोग जी रहे हैं ख़ुदा के बग़ैर भी
सन्नाटे गूँजते हैं सदा के बग़ैर भी

मिट्टी की मुम्लिकत में नुमू की ज़कात पर
ज़िंदा हैं पेड़ आब-ओ-हवा के बग़ैर भी

ये नफ़रतों के ज़र्द अलाव न होंगे सर्द
फैलेगी आग तेज़ हवा के बग़ैर भी

रब्त-ओ-ताल्लुक़ात का मौसम नहीं कोई
बारिश हुई है काली घटा के बग़ैर भी

दुनिया के कार-ज़ार में बच्चों को माओं ने
रुख़्सत किया है हर्फ़-ए-दुआ के बग़ैर भी

ख़ौफ़-ए-ख़ुदा में उम्र गुज़ारी तो क्या मिला
कुछ दिन जिएँगे ख़ौफ़-ए-ख़ुदा के बग़ैर भी