कुछ ख़बर लाई तो है बाद-ए-बहारी उस की
शायद इस राह से गुज़रेगी सवारी उस की
मेरा चेहरा है फ़क़त उस की नज़र से रौशन
और बाक़ी जो है मज़मून-निगारी उस की
आँख उठा कर जो रवादार न था देखने का
वही दिल करता है अब मिन्नत ओ ज़ारी उस की
रात की आँख में हैं हल्के गुलाबी डोरे
नींद से पलकें हुई जाती हैं भारी उस की
उस के दरबार में हाज़िर हुआ ये दिल और फिर
देखने वाली थी कुछ कार-गुज़ारी उस की
आज तो उस पे ठहरती ही न थी आँख ज़रा
उस के जाते ही नज़र मैं ने उतारी उस की
अरसा-ए-ख़्वाब में रहना है कि लौट आना है
फ़ैसला करने की इस बार है बारी उस की
ग़ज़ल
कुछ ख़बर लाई तो है बाद-ए-बहारी उस की
परवीन शाकिर