EN اردو
कुछ काम तो आया दिल-ए-नाकाम हमारा | शाही शायरी
kuchh kaam to aaya dil-e-nakaam hamara

ग़ज़ल

कुछ काम तो आया दिल-ए-नाकाम हमारा

फ़िगार उन्नावी

;

कुछ काम तो आया दिल-ए-नाकाम हमारा
टूटा है तो टूटा ही सही जाम हमारा

जितना इसे समझा किए बेगाना-ए-तासीर
इतना तो न था जज़्बा-ए-दिल ख़ाम हमारा

ये कौन मक़ाम आया क़दम उठते नहीं हैं
मंज़िल पे ठहरना तो न था काम हमारा

हम जैसे तड़पते हैं तड़पते रहे दिन रात
कुछ कर न सकी गर्दिश-ए-अय्याम हमारा

ये गर्दिश-ए-पैमाना है या गर्दिश-ए-तक़दीर
साक़ी किसी साग़र पे तो हो नाम हमारा

फूलों की हँसी बाइस-ए-तख़रीब-ए-चमन है
काँटों पे नहीं है कोई इल्ज़ाम हमारा

हम गर्दिश-ए-साग़र को निगाहों में लिए हैं
देखे कोई हुस्न-ए-तलब-ए-जाम हमारा

आग़ाज़-ए-मोहब्बत ही का एजाज़-ए-करम है
दिल हो गया बेगाना-ए-अंजाम हमारा

अंदाज़ तड़पने का जुदागाना है लेकिन
है कोई 'फ़िगार' और भी हमनाम हमारा