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कुछ इस तरह वो दुआ-ओ-सलाम कर के गया | शाही शायरी
kuchh is tarah wo dua-o-salam kar ke gaya

ग़ज़ल

कुछ इस तरह वो दुआ-ओ-सलाम कर के गया

अली यासिर

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कुछ इस तरह वो दुआ-ओ-सलाम कर के गया
मिरी तरफ़ ही रुख़-ए-इंतिक़ाम कर के गया

जहाँ में आया था इंसाँ मोहब्बतें करने
जो काम करना नहीं था वो काम कर के गया

असीर होते गए बा-दिल-ए-ना-ख़्वास्ता लोग
ग़ुलाम करना था उस ने ग़ुलाम कर के गया

जो दर्द सोए हुए थे वो हो गए बेदार
ये मोजज़ा भी मिरा ख़ुश-ख़िराम कर के गया

है ज़िंदगी भी वही जो हो दूसरों के लिए
वो मोहतरम हुआ जो एहतिराम कर के गया

ये सरज़मीं है जलाल ओ जमाल ओ अज़्मत की
है ख़ुश-नसीब यहाँ जो क़याम कर के गया

है कौन शाइर-ए-ख़ुश-फ़िक्र कौन है फ़नकार
ग़ज़ल बताएगी इस में नाम कर के गया

असर हुआ न हुआ बज़्म पर 'अली-यासिर'
कलाम करना था मैं ने कलाम कर के गया