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कुछ इस तरह निगाह से इज़हार कर गए | शाही शायरी
kuchh is tarah nigah se izhaar kar gae

ग़ज़ल

कुछ इस तरह निगाह से इज़हार कर गए

माहिर-उल क़ादरी

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कुछ इस तरह निगाह से इज़हार कर गए
जैसे वो मुझ को वाक़िफ़-ए-असरार कर गए

इक़रार कर दिया कभी इंकार कर गए
बे-ख़ुद बना दिया कभी हुश्यार कर गए

यक-ताई-ए-जमाल की हैरत न पूछिए
हर मा-सिवा के वहम से बे-ज़ार कर गए

कुछ इस अदा से जल्वा-ए-मअ'नी की शरह की
मेरे ख़याल-ओ-फ़िक्र को बेकार कर गए

अल्लाह रे उन के जल्वा-ए-रंगीं की फ़ितरतें
सारे जहाँ को नक़्श-ब-दीवार कर गए

वादे का उन के ज़िक्र ही 'माहिर' फ़ुज़ूल है
तुम क्या करोगे वो अगर इंकार कर गए