कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
ईमान-ओ-कुफ़्र और न दुनिया-ओ-दीं रहे
ऐ इश्क़-ए-शाद-बाश कि तन्हा हमीं रहे
आलम जब एक हाल पे क़ाएम नहीं रहे
क्या ख़ाक ए'तिबार-ए-निगाह-ए-यक़ीं रहे
मेरी ज़बाँ पे शिकवा-ए-दर्द-आफ़रीं रहे
शायद मिरे हवास ठिकाने नहीं रहे
जब तक इलाही जिस्म में जान-ए-हज़ीं रहे
नज़रें मिरी जवान रहें दिल हसीं रहे
या-रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो
दस्त-ए-जुनूँ रहे न रहे आस्तीं रहे
ता-चंद जोश-ए-इश्क़ में दिल की हिफ़ाज़तें
मेरी बला से अब वो जुनूनी कहीं रहे
जा और कोई ज़ब्त की दुनिया तलाश कर
ऐ इश्क़ हम तो अब तिरे क़ाबिल नहीं रहे
मुझ को नहीं क़ुबूल दो-आलम की वुसअतें
क़िस्मत में कू-ए-यार की दो-गज़ ज़मीं रहे
ऐ इश्क़-ए-नाला-कश तिरी ग़ैरत को क्या हुआ
है है अरक़ अरक़ वो तन-ए-नाज़नीं रहे
दर्द-ओ-ग़म-ए-फ़िराक के ये सख़्त मरहले
हैराँ हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे
अल्लाह-रे चश्म-ए-यार की मोजिज़-बयानियाँ
हर इक को है गुमाँ कि मुख़ातिब हमीं रहे
ज़ालिम उठा तू पर्दा-ए-वहम-ओ-गुमान-ओ-फ़िक्र
क्या सामने वो मरहला-हाए-यक़ीं रहे
ज़ात-ओ-सिफ़ात-ए-हुस्न का आलम नज़र में है
महदूद-ए-सज्दा क्या मिरा ज़ौक़-ए-जबीं रहे
किस दर्द से किसी ने कहा आज बज़्म में
अच्छा ये है वो नंग-ए-मोहब्बत यहीं रहे
सर-दादगान-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत की क्या कमी
क़ातिल की तेग़ तेज़ ख़ुदा की ज़मीं रहे
इस इश्क़ की तलाफ़ी-ए-माफ़ात देखना
रोने की हसरतें हैं जब आँसू नहीं रहे
ग़ज़ल
कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे
जिगर मुरादाबादी