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कुछ हसीनों की मोहब्बत भी बुरी होती है | शाही शायरी
kuchh hasinon ki mohabbat bhi buri hoti hai

ग़ज़ल

कुछ हसीनों की मोहब्बत भी बुरी होती है

हसन बरेलवी

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कुछ हसीनों की मोहब्बत भी बुरी होती है
कुछ ये बे-चैन तबीअत भी बुरी होती है

जीते-जी मेरे न आए तो न आए अब आओ
क्या शहीदों की ज़ियारत भी बुरी होती है

आप की ज़िद ने मुझे और पिलाई हज़रत
शैख़-जी इतनी नसीहत भी बुरी होती है

उस ने दिल माँगा तो इंकार का पहलू न मिला
ख़ाना-बर्बाद मुरव्वत भी बुरी होती है

ऐ 'हसन' आप कहाँ और कहाँ बज़्म-ए-शराब
पीर-ओ-मुरशिद बुरी सोहबत भी बुरी होती है