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कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए | शाही शायरी
kuchh faisla to ho ki kidhar jaana chahiye

ग़ज़ल

कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए

परवीन शाकिर

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कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए

नश्तर-ब-दसत शहर से चारागरी की लौ
ऐ ज़ख़्म-ए-बे-कसी तुझे भर जाना चाहिए

हर बार एड़ियों पे गिरा है मिरा लहू
मक़्तल में अब ये तर्ज़-ए-दिगर जाना चाहिए

क्या चल सकेंगे जिन का फ़क़त मसअला ये है
जाने से पहले रख़्त-ए-सफ़र जाना चाहिए

सारा जवार-भाटा मिरे दिल में है मगर
इल्ज़ाम ये भी चाँद के सर जाना चाहिए

जब भी गए अज़ाब-ए-दर-ओ-बाम था वही
आख़िर को कितनी देर से घर जाना चाहिए

तोहमत लगा के माँ पे जो दुश्मन से दाद ले
ऐसे सुख़न-फ़रोश को मर जाना चाहिए