EN اردو
कुछ दिनों क़ाएम रहे ऐ मह-जबीं इतनी नहीं | शाही शायरी
kuchh dinon qaem rahe ai mah-jabin itni nahin

ग़ज़ल

कुछ दिनों क़ाएम रहे ऐ मह-जबीं इतनी नहीं

नूह नारवी

;

कुछ दिनों क़ाएम रहे ऐ मह-जबीं इतनी नहीं
जिस नहीं का डर है वो तेरी नहीं इतनी नहीं

वो ये कहते हैं झटक कर मेरे दस्त-ए-शौक़ को
तेरे हाथ आए हमारी आस्तीं इतनी नहीं

मुझ से क्या बातें बनाते हो मुझे मा'लूम है
लूट ले दिल को निगाह-ए-शर्मगीं इतनी नहीं

ख़ाक पर गिर कर किसी दिन ख़ाक में मिल जाएगा
बाँध रक्खे दिल को ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं इतनी नहीं

'नूह' हम इस बहर में कुछ और लिखते चंद शेर
क्या मज़ामीं को हो गुंजाइश ज़मीं इतनी नहीं