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कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना | शाही शायरी
kuchh din ki raunaq barson ka jina

ग़ज़ल

कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना

आरज़ू लखनवी

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कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना
सारी जवानी आधा महीना

दुनिया-ए-दिल की रस्में निराली
बे-मौत मरना बे-आस जीना

रोका था दम भर लहराता आँसू
आ आ गया है दाँतों पसीना

वो ऐसे ही हैं जा रे जवानी
जो ख़ुद ही बख़्शा वो ख़ुद ही छीना

जिस का था वअ'दा वो कल न आई
दिन गिनते गुज़रा सारा महीना

मुँह पर सफ़ाई और चोर दिल में
आईना फेंको पोंछो पसीना

बस 'आरज़ू' बस फ़र्दा का वअ'दा
बरसों की बातें दो दिन का जीना