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कुछ दर्द है मुतरिबों की लय में | शाही शायरी
kuchh dard hai mutribon ki lai mein

ग़ज़ल

कुछ दर्द है मुतरिबों की लय में

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

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कुछ दर्द है मुतरिबों की लय में
कुछ आग भरी हुई है नय में

कुछ ज़हर उगल रही है बुलबुल
कुछ ज़हर मिला हुआ है मय में

बद-मस्त जहान हो रहा है
है यार की बू हर एक शय में

है मस्ती-ए-नीम-ख़ाम का डर
इसरार है जाम-ए-पय-ब-पय में

मय-ख़ाना-नशीं क़दम न रक्खें
बज़्म-ए-जम ओ बारगाह-ए-कै में

अब तक ज़िंदा है नाम वाँ का
गुज़रा है हुसैन एक ''है'' में

होती नहीं तय हिकायत-ए-''तय''
गुज़रा है करीम एक ''तय'' में

कुछ 'शेफ़्ता' ये ग़ज़ल है आफ़त
कुछ दर्द है मुतरिबों की लय में