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कुछ भी नहीं है पास तुम्हारी दुआ तो है | शाही शायरी
kuchh bhi nahin hai pas tumhaari dua to hai

ग़ज़ल

कुछ भी नहीं है पास तुम्हारी दुआ तो है

आनन्द सरूप अंजुम

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कुछ भी नहीं है पास तुम्हारी दुआ तो है
इस शहर-ए-बे-चराग़ में इक आसरा तो है

हाथों में मेरे चाँद सितारे नहीं तो क्या
दिल में तिरे यक़ीन का रौशन दिया तो है

रस्ते की मुश्किलों से हिरासाँ है किस लिए
जिस का नहीं है कोई भी उस का ख़ुदा तो है

किस से छुपा रहा है तू दिल की कहानियाँ
वो हाल-ए-रोज़-ओ-शब से तिरे आश्ना तो है

'अंजुम' किसी से लाख बहाने करे मगर
लेकिन बिछड़ के तुझ से वो बिखरा हुआ तो है