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कुछ बे-तरतीब सितारों को पलकों ने किया तस्ख़ीर तो क्या | शाही शायरी
kuchh be-tartib sitaron ko palkon ne kiya tasKHir to kya

ग़ज़ल

कुछ बे-तरतीब सितारों को पलकों ने किया तस्ख़ीर तो क्या

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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कुछ बे-तरतीब सितारों को पलकों ने किया तस्ख़ीर तो क्या
वो शख़्स नज़र भर रुक न सका एहसास था दामन-गीर तो क्या

कुछ बनते मिटते दाएरे से इक शक्ल हज़ारों तस्वीरें
सब नक़्श ओ निगार उरूज पे थे आँखें थीं ज़वाल-पज़ीर तो क्या

ख़ुश हूँ कि किसी की महफ़िल में अर्ज़ां थी मता-ए-बेदारी
अब आँखें हैं बे-ख़्वाब तो क्या अब ख़्वाब हैं बे-ताबीर तो क्या

ख़्वाहिश के मुसाफ़िर तो अब तक तारीकी-ए-जाँ में चलते हैं
इक दिल के निहाँ-ख़ाने में कहीं जलती है शम-ए-ज़मीर तो क्या

सहरा-ए-तमन्ना में जिस के जीने का जवाज़ ही झोंके हों
उस रेत के ज़र्रों ने मिल कर इक नाम किया तहरीर तो क्या

लिखता हूँ तो पोरों से दिल तक इक चाँदनी सी छा जाती है
'क़ासिर' वो हिलाल-ए-हर्फ़ कभी हो पाए न माह-ए-मुनीर तो क्या