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कुछ अपनी बात कहो कुछ मिरी सुनो मत सो | शाही शायरी
kuchh apni baat kaho kuchh meri suno mat so

ग़ज़ल

कुछ अपनी बात कहो कुछ मिरी सुनो मत सो

शाहिद इश्क़ी

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कुछ अपनी बात कहो कुछ मिरी सुनो मत सो
ये रात फिर नहीं आने की दोस्तो मत सो

किसे ख़बर कि सबा क्या पयाम ले आए
सदा दिलों के दरीचे खुले रखो मत सो

बुझीं जो शमएँ तो रौशन करो दिलों के चराग़
न बुझने वाले सितारों का साथ दो मत सो

जो सुन सको तो सुनो तिश्ना-रूह की फ़रियाद
मिसाल-ए-साग़र मय-ए-दौर में रहो मत सो

ख़िरद का कहना है सो जाओ वो न आएगा
पुकार दिल की यूँही जागते रहो मत सो

न सो सकें जो हम आवारगान-ए-कूचा-ए-शौक़
तो तुम भी शहर की शब-ताब मह-वशो मत सो

ये जलती-बुझती सी यादों की कहकशाँ 'इश्क़ी'
बिखर न जाए ग़ज़ल ही कोई कहो मत सो