कुछ ऐसे अहल-ए-नज़र ज़ेर-ए-आसमाँ गुज़रे
कि जिन के फ़र्श पे भी अर्श का गुमाँ गुज़रे
मिरे सुकूत-ए-मुसलसल को भी सदा देना
अगर इधर से कभी सोरिश-ए-ज़माँ गुज़रे
तुझे ख़बर है तिरी याद में सर-ए-मिज़्गाँ
तमाम रात सितारों के कारवाँ गुज़रे
वही तो हैं मिरी बरबाद उम्र का हासिल
जो हादसात जवानी में ना-गहाँ गुज़रे
तिलस्म-ए-हुस्न-ओ-मोहब्बत नहीं तो फिर क्या है
दिलों की बात निगाहों के दरमियाँ गुज़रे
तुम्हारे वादा-ए-फ़र्दा की ज़द में जो आए
फिर उस की रात कहाँ गुज़रे दिन कहाँ गुज़रे
अब अपना हाल-ए-दिल-ए-ज़ार क्या कहूँ 'जाफ़र'
हर एक बात मिरी उन पे जब गराँ गुज़रे

ग़ज़ल
कुछ ऐसे अहल-ए-नज़र ज़ेर-ए-आसमाँ गुज़रे
जाफ़र अब्बास सफ़वी