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कुछ ऐसा हो गया है यार अपना | शाही शायरी
kuchh aisa ho gaya hai yar apna

ग़ज़ल

कुछ ऐसा हो गया है यार अपना

नईम रज़ा भट्टी

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कुछ ऐसा हो गया है यार अपना
गिला बनता है अब बेकार अपना

पस-ए-पर्दा बहुत बे-पर्दगी है
बहुत बेज़ार है किरदार अपना

ख़राबे में किसे अपनी ख़बर है
अगरचे कर लिया इंकार अपना

दर-ओ-दीवार से झड़ती है हैरत
कहाँ ले जाऊँ मैं आज़ार अपना

वफ़ूर-ए-नश्शा-ए-लग़्ज़िश के बाइस
हुआ है रास्ता हमवार अपना

पतिंगे घेर लाता हूँ कहीं से
दिए की लौ से जो है प्यार अपना

'रज़ा' ये फूल होने की तमन्ना
किसी की साँस पर है बार अपना