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कुछ ऐसा भी तो हो जाए कभी ऐसा करे कोई | शाही शायरी
kuchh aisa bhi to ho jae kabhi aisa kare koi

ग़ज़ल

कुछ ऐसा भी तो हो जाए कभी ऐसा करे कोई

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

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कुछ ऐसा भी तो हो जाए कभी ऐसा करे कोई
बनाए ख़ुद नशेमन और फिर सहरा करे कोई

तुम्हारे नाम के हमराह मेरा नाम ले दुनिया
मिरा दिल चाहता है फिर मुझे रुस्वा करे कोई

अगर तू मिल नहीं सकता तो कुछ तदबीर ऐसी हो
मिरी आँखों से तुझ को उम्र-भर देखा करे कोई

ख़िरद पर लोग नाज़ाँ हैं जुनूँ पर फ़ख़्र है मुझ को
जुनूँ से मेरे अपनी अक़्ल का सौदा करे कोई

ये फ़ितरत कब भला इंसानियत से मेल खाती है
सफ़ीना डूबता हो दूर से देखा करे कोई

वो दिल में जागुज़ीँ है मुस्तक़िल है जल्वा-फ़रमाई
भला ऐसे में फिर किस तरह से पर्दा करे कोई

हुजूम-ए-ग़म सँभलता ही नहीं ऐ 'शम्अ'' अब मुझ से
कभी तो काश ऐसा हो मुझे तन्हा करे कोई