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कोशिश ज़रा सी की जो दुआओं के साथ साथ | शाही शायरी
koshish zara si ki jo duaon ke sath sath

ग़ज़ल

कोशिश ज़रा सी की जो दुआओं के साथ साथ

महमूद तासीर

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कोशिश ज़रा सी की जो दुआओं के साथ साथ
जलने लगे चराग़ हवाओं के साथ साथ

निकले बहार ओढ़ के कुछ ख़ुशनुमा बदन
ख़ुश्बू भी हम-सफ़र है क़बाओं के साथ साथ

चेहरा-कुशा हुआ है कोई गेसुओं के बीच
लगने लगी है धूप भी छाँव के साथ साथ

शहरों से मुख़्तलिफ़ हैं ये गाँव की लड़कियाँ
भरती हैं गागरें भी अदाओं के साथ साथ

यूँ तो मैं इस दयार से कुछ भी न ला सका
कुछ ख़ाक लग के आ गई पाँव के साथ साथ