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कोई ज़ख़्म खुला तो सहने लगे कोई टीस उठी लहराने लगे | शाही शायरी
koi zaKHm khula to sahne lage koi Tis uThi lahrane lage

ग़ज़ल

कोई ज़ख़्म खुला तो सहने लगे कोई टीस उठी लहराने लगे

रउफ़ रज़ा

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कोई ज़ख़्म खुला तो सहने लगे कोई टीस उठी लहराने लगे
ये किस की दुआ का फ़ैज़ हुआ हम क्या क्या काम दिखाने लगे

दिल-ए-ज़ार उसी बस्ती में चल तिरे नाम की सरसों फूली है
चाँदी की सड़क पर चलते हुए अब पाँव तिरे कुम्हलाने लगे

कोई डूब गया तो क्या डूबा कोई पार उतरा तो क्या उतरा
पर क्या कहिए दिल दरिया की जो पाँव धरे इतराने लगे

अभी शाम ज़रा सी महकी है पर क्या कहिए क्या जल्दी है
अभी रात पड़ाव भी आगे है और ख़्वाब बुलावे आने लगे

तुम कौन से 'हाफ़िज़' ओ 'ग़ालिब' हो तुम 'मीर' 'कबीर' कहाँ के हो
तुम्हें पहला सबक़ भी याद नहीं और फ़नकारी दिखलाने लगे