कोई तो दिल की निगाहों से देखता जाए
हमारी रूह के कुछ ग़म समेटता जाए
तुम्हारे मिलने की हर आस आज टूट गई
तुम्हीं बताओ कि अब किस तरह जिया जाए
ज़रा तो सोचिए उस दिल का हाल क्या होगा
तलाश-ए-गुल में जो पत्थर की चोट खा जाए
सजा के तुम को गुलों से उठाए हैं पत्थर
ज़माना कितना सितमगर है क्या किया जाए
करेंगे कैसे हक़ीक़त का सामना हम लोग
हमें तो ख़्वाब ही कोई दिखा दिया जाए
किसी तरह तो अंधेरे ग़मों के छट जाएँ
मिरा बुझा हुआ दिल ही कोई जला जाए
रह-ए-हयात में काँटे बिछें कि फूल खिलें
ये शर्त है तिरी जानिब वो रास्ता जाए

ग़ज़ल
कोई तो दिल की निगाहों से देखता जाए
मसूदा हयात