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कोई ठोकर इस ने जब खाई न थी | शाही शायरी
koi Thokar isne jab khai na thi

ग़ज़ल

कोई ठोकर इस ने जब खाई न थी

करन सिंह करन

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कोई ठोकर इस ने जब खाई न थी
ज़िंदगी ये राह पर आई न थी

आप की बातें थीं बातें ही फ़क़त
आप की बातों में गहराई न थी

हर क़दम पर रंज-ओ-ग़म थे मुंतज़िर
किस जगह मेरी पज़ीराई न थी

ज़िंदगी थी इक सुकूत-ए-मुस्तक़िल
मुश्किलों से जब शनासाई न थी

आप की यादें थीं दिल के आस पास
ज़िंदगी में कोई तन्हाई न थी

एक भी पूरी न हो पाई 'करन'
कौन सी उस ने क़सम खाई न थी