कोई ठोकर इस ने जब खाई न थी
ज़िंदगी ये राह पर आई न थी
आप की बातें थीं बातें ही फ़क़त
आप की बातों में गहराई न थी
हर क़दम पर रंज-ओ-ग़म थे मुंतज़िर
किस जगह मेरी पज़ीराई न थी
ज़िंदगी थी इक सुकूत-ए-मुस्तक़िल
मुश्किलों से जब शनासाई न थी
आप की यादें थीं दिल के आस पास
ज़िंदगी में कोई तन्हाई न थी
एक भी पूरी न हो पाई 'करन'
कौन सी उस ने क़सम खाई न थी
ग़ज़ल
कोई ठोकर इस ने जब खाई न थी
करन सिंह करन