EN اردو
कोई सितारा-ए-गिर्दाब आश्ना था मैं | शाही शायरी
koi sitara-e-girdab aashna tha main

ग़ज़ल

कोई सितारा-ए-गिर्दाब आश्ना था मैं

सलीम अहमद

;

कोई सितारा-ए-गिर्दाब आश्ना था मैं
कि मौज मौज अंधेरों में डूबता था मैं

उस एक चेहरे में आबाद थे कई चेहरे
उस एक शख़्स में किस किस को देखता था मैं

नए सितारे मिरी रौशनी में चलते थे
चराग़ था कि सर-ए-राह जल रहा था मैं

सफ़र में इश्क़ के इक ऐसा मरहला आया
वो ढूँडता था मुझे और खो गया था मैं

तमाम उम्र का हासिल सराब ओ तिश्ना-लबी
मिरा क़ुसूर यही था कि सोचता था मैं

बिगड़ रहा था मैं दुनिया के ज़ाविए से मगर
इक और ज़ाविया था जिस से बन रहा था मैं

नहीं रहा मैं तिरे रास्ते का पत्थर भी
वो दिन भी थे तिरे एहसास में ख़ुदा था मैं

मुझे गिला न किसी संग का न आहन का
उसी ने तोड़ दिया जिस का आईना था मैं