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कोई सर्द हवा लब-ए-बाम चली | शाही शायरी
koi sard hawa lab-e-baam chali

ग़ज़ल

कोई सर्द हवा लब-ए-बाम चली

शाहिदा हसन

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कोई सर्द हवा लब-ए-बाम चली
फिर ख़्वाहिश-ए-बे-अंजाम चली

क्या ख़ाक सुकूँ से नाव चले
जब मौज ही बे-आराम चली

वो बात जो सारी उम्र की थी
बस साथ मिरे दो गाम चली

इक हर्फ़-ए-ग़लत को छूते ही
मैं मिस्ल-ए-ख़याल-ए-ख़ाम चली

अब रात से मिल कर पलटूँ क्या
जब सुब्ह से मैं ता-शाम चली

ख़ुद ढह गई वो दीवार मगर
गिरते हुए घर को थाम चली