कोई रखता ही नहीं फिर भी रहा करता है
ऐ मिरे दिल तू भला है सो भला करता है
तुम ने तो आप ही पिंजरे को खुला छोड़ दिया
कोई ऐसे भी परिंदों को रिहा करता है
उस की हर बात भुला देना ज़रूरत है मिरी
फिर भी जो दिल है उसे याद सिवा करता है
अब वो पहले से मनाज़िर भी नज़र आएँ क्या
वो किन्ही और निगाहों से तका करता है
क्या कभी तुम ने किसी ठग से मोहब्बत की है
एक 'तरकश' है जो दिल्ली में हुआ करता है

ग़ज़ल
कोई रखता ही नहीं फिर भी रहा करता है
तरकश प्रदीप