कोई क़रीब न आए शिकस्ता-पा हूँ मैं
करम तो है मगर अंजाम देखता हूँ मैं
मिरी निगाह में कुछ और ढूँडने वाले
तिरी निगाह में कुछ और ढूँडता हूँ मैं
ज़माना देर-फ़रामोश तो नहीं इतना
ये ठीक है कि बहुत देर-आश्ना हूँ मैं
ग़लत नहीं वो जो शिकवे अब आप को होंगे
बदल गया है ज़माना बदल गया हूँ मैं
मुझे सताओ नहीं ज़िंदगी निगाह में है
फ़रेब खाओ नहीं तुम को जानता हूँ मैं
मिरा ग़ुरूर-ए-मोहब्बत कि मैं नहीं समझा
तिरी नज़र ने कहा था कि दिलरुबा हूँ मैं
ग़ज़ल
कोई क़रीब न आए शिकस्ता-पा हूँ मैं
महबूब ख़िज़ां

