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कोई पल जी उठे अगर हम भी | शाही शायरी
koi pal ji uThe agar hum bhi

ग़ज़ल

कोई पल जी उठे अगर हम भी

नईम रज़ा भट्टी

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कोई पल जी उठे अगर हम भी
दम न ले पाएगा यहाँ दम भी

कार-ए-बेकार का असासा है
मुझ से बे-जान के सिवा ग़म भी

क्या मिरे बस में कुछ नहीं रक्खा
ग़ैब से आएगा अगर नम भी

जिस जगह अपनी बेबसी हँस दे
ख़ाक कर पाएगा वहाँ रम भी

अपनी बे-ए'तिदालियों के सबब
मैं अगर बढ़ गया हुआ कम भी