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कोई नज़्र-ए-ग़म-ए-हालात न होने पाए | शाही शायरी
koi nazr-e-gham-e-haalat na hone pae

ग़ज़ल

कोई नज़्र-ए-ग़म-ए-हालात न होने पाए

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

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कोई नज़्र-ए-ग़म-ए-हालात न होने पाए
और हर बात हो ये बात न होने पाए

जो भी सूरत है इनायत है करम है उन का
राएगाँ उन की ये सौग़ात न होने पाए

उन की तस्वीर से हर लम्हा रहे राज़-ओ-नियाज़
मुंतशिर शान-ए-ख़यालात न होने पाए

सख़्त दुश्वार है पाबंदी-ए-आईन-ए-वफ़ा
बात तो जब है तुझे मात न होने पाए

जान दे दीजिए आदाब-ए-मोहब्बत के लिए
देखिए ख़ामी-ए-जज़्बात न होने पाए

बज़्म में उन का कोई ज़िक्र जो आ जाता है
हुक्म होता है मिरी बात न होने पाए

हुस्न-ए-किरदार से हस्ती को सजा लो 'वसफ़ी'
ज़िंदगी नज़्र-ए-ख़ुराफ़ात न होने पाए