कोई नज़्र-ए-ग़म-ए-हालात न होने पाए
और हर बात हो ये बात न होने पाए
जो भी सूरत है इनायत है करम है उन का
राएगाँ उन की ये सौग़ात न होने पाए
उन की तस्वीर से हर लम्हा रहे राज़-ओ-नियाज़
मुंतशिर शान-ए-ख़यालात न होने पाए
सख़्त दुश्वार है पाबंदी-ए-आईन-ए-वफ़ा
बात तो जब है तुझे मात न होने पाए
जान दे दीजिए आदाब-ए-मोहब्बत के लिए
देखिए ख़ामी-ए-जज़्बात न होने पाए
बज़्म में उन का कोई ज़िक्र जो आ जाता है
हुक्म होता है मिरी बात न होने पाए
हुस्न-ए-किरदार से हस्ती को सजा लो 'वसफ़ी'
ज़िंदगी नज़्र-ए-ख़ुराफ़ात न होने पाए
ग़ज़ल
कोई नज़्र-ए-ग़म-ए-हालात न होने पाए
अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची