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कोई नश्शा न कोई ख़्वाब ख़रीद | शाही शायरी
koi nashsha na koi KHwab KHarid

ग़ज़ल

कोई नश्शा न कोई ख़्वाब ख़रीद

राही फ़िदाई

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कोई नश्शा न कोई ख़्वाब ख़रीद
तीरा-बख़्ती है माहताब ख़रीद

है मुज़य्यन दुकान-ए-ला-अद्री
सौ सवालों का इक जवाब ख़रीद

कीसा-ए-तम्मा में छुपा दीनार
फिर बिला ख़ौफ़ एहतिसाब ख़रीद

बड़ी मब्सूत है किताब-ए-ख़ल्क़
कोई अच्छा सा इंतिख़ाब ख़रीद

तुझ में है बहर-ए-बे-कराँ का वजूद
तुझ से किस ने कहा हबाब ख़रीद

तोता-चश्मी के ऐब से है पाक
शक्ल बद ही सही ग़ुराब ख़रीद

तब कहीं जा के होगा तू 'ग़ालिब'
असदुल्लाह का ख़िताब ख़रीद

मदह-ख़्वाँ होगा हर वरक़ 'राही'
सिर्फ़ इक लफ़्ज़-ए-इंतिसाब ख़रीद