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कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर | शाही शायरी
koi munh chum lega is nahin par

ग़ज़ल

कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर

रियाज़ ख़ैराबादी

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कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
शिकन रह जाएगी यूँही जबीं पर

गरी थी आज तो बिजली हमीं पर
ये कहिए झुक पड़े वो हम-नशीं पर

लहु बेकस का मक़्तल की ज़मीं पर
न दामन पर न उन की आस्तीं पर

बलाएँ बन के वो आईं हमीं पर
दुआएँ जो गईं अर्श-ए-बरीं पर

ये क़िस्मत दाग़ जिस में दर्द जिस में
वो दिल हो लूट दस्त-ए-नाज़्नीं पर

रुला कर मुझ को पोंछे अश्क-ए-दुश्मन
रहा धब्बा ये उन की आस्तीं पर

उड़ाए फिरती है उन को जवानी
क़दम पड़ता नहीं उन का ज़मीं पर

अरे ओ चर्ख़ देने के लिए दाग़
बहुत हैं चाँद के टुकड़े ज़मीं पर

नज़ाकत कोसती है मुझ को क्या क्या
तबीअत आई अच्छी नाज़नीं पर

तमन्ना-ए-असर ऊ चश्म-ए-हसरत
उठा रख अब निगाह-ए-वापसीं पर

धरी रह जाएगी यूँही शब-ए-वस्ल
नहीं लब पर शिकन उन की जबीं पर

ख़ुदा जाने दिखाएगी ये क्या रंग
दुआएँ जम्अ' हैं अर्श-ए-बरीं पर

निगाह-ए-शौक़ गरम इतनी कि बिजली
न आँच आए कहीं उस नाज़नीं पर

मुझे है ख़ून का दावा मुझे है
उन्हीं पर दावर-ए-महशर उन्हीं पर

'रियाज़' अच्छे मुसलमाँ आप भी हैं
कि दिल आया भी तो काफ़िर हसीं पर